एंटीबायोटिक दवाएं खाने से पहले जरूर पढ़ें!


अगर आपका डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक दवाएं किसी टॉफी की तरह अक्सर देता रहता है तो बेहतर होगा कि आप दूसरा डॉक्टर चुन लें.


भारत दुनिया भर में एंटीबायोटिक दवाओं का सबसे बड़ा उपभोक्ता है.

2050 तक दुनिया भर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण एक करोड़ से अधिक लोगों की मौत होगी: सीडीसी अटलांटा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले साल भारत में ड्रग रेजिस्टेंस बैक्टीरिया के कारण 58,000 नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई थी.

मवेशियों पर एंटीबीयोटिक्स का प्रयोग करने वाले टॉप 5 देशों में से एक भारत भी है.
आपकी उंगली में लगा छोटा सा कट भी आपके लिए जानलेवा हो सकता है. एक अपेंडिक्स किसी अंग के प्रत्यारोपण जितना ही जोखिम भरा हो सकता है. प्रजनन से महिलाओं की मौत हो सकती है.
यह किसी फिक्शन उपन्यास का प्लॉट नहीं है बल्कि 70 सालों से धड़ाधड़ एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन से उपजा यह डर है कि दुनिया कहीं एंटीबायोटिक के बाद के युग में न पहुंच जाए.
कई हानिकारक बैक्टीरिया अब एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हो चुके हैं. वे दिन दूर नहीं जब एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के कारण घरेलु बुखार हमारी आधी जनसंख्या को खत्म कर देगा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में चेतावनी दी है कि जल्द ही कई सामान्य तरह के संक्रमणों का उपचार करना असंभव हो जाएगा. यूएस सेंटर ऑफ डिजीज ने भी इस खतरे को माना है और ब्रिटेन भी इसे लेकर सचेत होने की जरूरत समझ रहा है.
अगर इसी तरह बदलाव होता रहा तो 2050 तक दुनिया भर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण एक करोड़ से अधिक लोगों की मौत होगी.
भारत क्यों होगा बुरी तरह से प्रभावित?
"भारत में ओवर द काउंटर मिलने वाले एंटीबायोटिक्स की खपत बहुत अधिक है और अधिक जनसंख्या के कारण इस पर नजर रखना भी मुश्किल है."
-कार्डिफ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टिमोथी वाश
दवाओं के प्रतिरोधी बैक्टीरिया से खतरा 
धड़ल्ले से दुकानों में बिकने वाली दवाएं और बिना डॉक्टरी मश्वरे के इनका सेवन. यहां तक कि डॉक्टर भी इन्हें अधिक से अधिक मरीज को देते हैं. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मेट्रो शहरों के हर पांच में से तीन डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाएं मरीज को इसलिए लिखते हैं क्योंकि इनसे जल्दी आराम मिलता है और मरीज को मानसिक संतुष्टि मिलती है.
दूसरा कारण यह भी है कि मरीज एंटीबायोटिक्स दवाओं का कोर्स पूरा नहीं करते हैं. थोड़ा सा आराम होते है वे दवाओं का पूरा कोर्स नहीं लेते हैं. जितनी बार आप खुद से एंटीबायोटिक का सेवन करते हैं उतनी बार उस रोग को जन्म देने वाले बैक्टीिरया में प्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है. आगे चलकर उस दवा से आपको आराम मिलना बंद हो जाता है.
अब एंटीबायोटिक दवाएं इस कदर बेअसर होती जा रही हैं कि इनकी विफलता के कारण हजारों की तादाद में नवजात शिशुओं की मृत्यु हो रही है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले साल भारत में ड्रग रेजिस्टेंस बैक्टीरिया के कारण 58,000 नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई थी.  
“यह चिंताजनक स्थिति है. पांच साल पहले हमने इस तरह के संक्रमणों के बारे में सुना तक नहीं था. अब करीब 100 प्रतिशत बच्चों को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस की आशंका हो सकती है जो कि भयावह है.”
- सर गंगा राम अस्पताल के नियोनोटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. नीलम खेर

मवेशियों पर एंटीबीयोटिक्स का प्रयोग करने वाले टॉप देशों में से एक भारत भी है
मवेशियों पर एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक परीक्षण भी हमारे लिए बड़ा खतरा हो सकता है. भारत में करीब 60 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाओं का परीक्षण मवेशियों पर होता है.
वहीं चिकन मीट और मटन का व्यापार करने वाले एंटिबायोटिक्स का प्रयोग जानवरों का आकार बड़ा करने के लिए करते हैं. यही एंटिबायोटिक्स मीट के साथ हमारे शरीर में पहुंचते हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि भोजन में मौजूद एंटीबायोटिक और अधिक दवाओं का सेवन हमारे लिए खतरे को दोगुनी रफ्तार से बढ़ाता है.
अभी तक भारत में मुर्गों, मवेशियों और सूअरों पर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से संबंधित ठोस कानून नहीं हैं.
जरूरी है बदलाव
  
पिछले 15 सालों में किसी भी तरह की नई एंटीबायोटिक  दवा विकसित नहीं हो पाई है. और भी चिंताजनक स्थिति यह है कि अभी भी नई एंटीबायोटिक दवाओं से जुड़े शोध नहीं हो रहे हैं. इन दवाओं का कम से कम सेवन ही ऐसी स्थिति में हमारे लिए एकमात्र विकल्प है.
तो अगली बार बिना डॉक्टर से पूछे एंटिबायोटिक दवाई लेने से पहले दो बार जरूरी सोचिएगा.

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